एयर क्वालिटी पर WHO की नई गाइडलाइंस क्या है?
आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि - दुनिया भर में हर साल एक अनुमान के मुताबिक 70 लाख लोगों की समय से ही पहले ही मौत हो जाती है. कहीं ना कहीं प्रदूषण इसके लिए जिम्मेदार है. इसलिए WHO ने पूरे विश्व के सामने खराब एयर क्वालिटी को दुरुस्त करने की चुनौती रख दी है. नई गाइडलाइंस में कहा गया है कि हवा को प्रदूषित करने वाले PM 2.5 पॉल्यूटेंट का सालाना औसतन स्तर 10 माइक्रोग्राम्स प्रति क्यूबिक मीटर से घटाकर पांच माइक्रोग्राम्स प्रति क्यूबिक मीटर पर लाना होगा. वहीं अब PM 10 का वार्षिक औसत 15 माइक्रोग्राम्स प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
22 सितंबर 2021 को संयुक्त राष्ट्र की 7वीं आमसभा में इन गाइडलाइंस को जारी करते हुए WHO ने कहा कि वायु प्रदूषण लोगों की सेहत से जुड़े सबसे बड़े खतरों में से एक है. और एयर पोल्यूशन को कम कर Heart Disease, फेफड़ों के कैंसर और आस्थमा समेत सांस से जुड़ी बीमारियों को कम किया जा सकता है
पार्टिकुलेट मैटर क्या होता है?
पार्टिकुलेट मैटर दरअसल हवा में पाए जाने वाले ठोस या तरल पदार्थों के मिश्रण को कहते है जो कि आकार में बहुत छोटे होते हैं. इन्हें प्रदूषण कण भी कहा जाता है यानि की हवा में मौजूद वो कण जो अकेले या फिर एक साथ मिलकर वायु प्रदूषण को जन्म देते हैं. ये कण आकार में इतने छोटे होते हैं कि आंखों से दिखाई नहीं देते लेकिन सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और हमारी सेहत को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. पर्टिकुलेट मैटर को शॉर्ट में पीएम कहा जाता है. चलिए अब ये जानते हैं कि हवा में मौजूद पीएम 10 और पीएम 2.5 कणों के बीच क्या फर्क है और हमपर इसका क्या असर होता है?
पीएम 10 और पीएम 2.5 का मतलब क्या है?
पीएम 10 को रेस्पायरेबल पर्टिकुलेट मैटर कहा जाता है. इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर होता है. हवा में मौजूद पीएम 10 का Standard Level 100 माइक्रो ग्राम क्यूजबिक मीटर होना चाहिए. वहीं इससे छोटे कणों का आकार 2.5 माइक्रोमीटर या फिर इससे कम होता है. जिसमें धूल, गर्द और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं. इन्हीं कणों को पीएम 2.5 कहा जाता है.
पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है. ये कण कितने छोटे होते हैं इसे जानने के लिए ऐसे समझिए कि एक आदमी का बाल लगभग 100 माइक्रोमीटर का होता है. एक बाल की चौड़ाई के बराबर पीएम 2.5 के लगभग 40 कणों को साथ जोड़कर रखा जा सकता है. पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है और विजिबिलिटी का स्तर गिर जाता है. पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है लेकिन दिल्ली जैसे शहर में ये 300 से 500 तक भी पहुंच जाता है. पीएम 2.5 बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. जिससे कि आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है. खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है. यहां तक की इसके लगातार संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है.