यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध को एक महीना पूरा होने वाला है. लेकिन यूक्रेन पर आए दिन तेजी से हमले बढ़ रहे हैं. दोनों ही देशों के बीच बेशक शांति वार्ता चल रही है लेकिन शांति दूर दूर तक नजर नहीं आ रही. रूस ने अपनी सीमा पर नाटो के विस्तार को रोकने के लिए यूक्रेन पर ये हमला बोला था. रूस चाहता है कि किसी भी कीमत पर यूक्रेन नाटो देशों में शामिल न हो. वहीं अमेरिका नाटो के विस्तार पर अड़ा हुआ है. उसका और नाटो का मानना है कि कोई भी स्वतंत्र देश उनके सैन्य संगठन में शामिल होने के लिए स्वतंत्र है. आज नो दिस के इस वीडियो में हम जानेंगे कि रूस यूक्रेन जंग के बीच अमेरिका नाटो के विस्तार को लेकर अडिग क्यों है और इससे उसको क्या फायदा मिलेगा. आप वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ.
रूस और नाटो के बीच विवाद नया नहीं है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब नाटो बनाया गया तो उस वक्त पश्चिमी देश नाटो से जुड़े थे, लेकिन यह धीरे-धीरे ईस्ट की तरफ बढ़ रहा है, जो रूस को पसंद नहीं आ रहा है. विवाद की वजह यह भी है कि नाटो को सोवियत संघ के खिलाफ बनाया गया था और रूस सोवियत संघ का ही हिस्सा था.
NATO का गठन 4 अप्रैल 1949 में अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी देशों ने मिलकर किया था. फिलहाल NATO में कुल 30 देश हैं. इस संगठन ने सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था बनाई है जिसके तहत सदस्य देश बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे. यानि अगर किसी सदस्य देश पर विदेशी हमला होता है या खतरा पैदा होता है तो उसकी सामूहिक रक्षा की जाएगी. NATO का गठन अमेरिका, कनाडा, 27 यूरोपीय देश और एक यूरेशियाई देश ने मिलकर सोवियत संघ के खिलाफ मजबूत मोर्चा तैयार करने की नीयत से किया था.
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक नाटो के विस्तार का सीधा संबंध अमेरिका की बड़ी रक्षा कंपनियों से जुड़ा हुआ है. वहां की बड़ी डिफेंस कंपनियां अमेरिकी सरकार पर दबाव बनाती रहती हैं कि वे नाटो का विस्तार करें ताकि उनके लिए एक बड़ा बाजार पैदा हो सके. रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई देश नाटो का सदस्य बनता है तो उसे सैन्य संगठन के नियमों को मानना होगा और उसे पश्चिमी देशों से अरबों डॉलर के हथियारों और उपकरणों को लेना जरूरी होगा. दुनिया के अरबों डॉलर के हथियारों के बाजार पर अमेरिकी कंपनियों का ही दबदबा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक हथियारों के बाजार में अमेरिकी कंपनियां सबसे आगे हैं. विश्व की 100 टॉप कंपनियों में अमेरिका का नंबर सबसे ऊपर है.
अमेरिका और अन्य नाटो देश यूक्रेन को लगातार घातक हथियारों की सप्लाई कर रहे. इस मामले में नाटो की उपस्थिति साफ करती है कि एक सहयोगी पर हमले को पूरे गठबंधन पर हमला माना जाएगा. वहीं रूस की मांग है कि नाटो का विस्तार रोका जाए और क्षेत्र से ऐसे हथियारों को हटाया जाए जिससे रूस को खतरा हो सकता है. फिलहाल अमेरिका ने यूक्रेन को नाटो से अलग करने की रूस की मांग को खारिज कर दिया है. देखना होगा कि नाटो के विस्तार पर रूस का क्या रुख होगा और यूक्रेन पर इसका क्या असर पड़ेगा.