जब तालिबान ने बंदूक की नोक पर अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो चीन पहला देश था जिसने उसकी सरकार को मान्यता दी. अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत से चीन बहुत खुश है. क्योंकि चाहे पाकिस्तान हो या श्रीलंका या चीन के कर्ज जाल में फंस चुका कोई और देश. बीजिंग ने सबको अपने फायदे के लिए ही इस्तेमाल किया है. अब सवाल ये है कि तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान में चीन का स्वार्थ क्या है? तालिबान से आखिर चीन क्या चाहता है? जानने के लिए देखते रहें नो दिस.
तालिबान के साथ क्यों खड़ा है चीन?
चीन ने कतर और जॉर्डन में राजदूत रहे युइ जाओ योंग को तालिबान से बात करने काबुल भेजा. इसके कुछ दिनों बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबान के डिप्टी लीडर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से मुलाक़ात की. फिर 15 अगस्त को तालिबान ने काबुल पर कब्जा जमाया और चीन उसकी सरकार को मान्यता देने वाला पहला देश बना. चीन के विदेश मंत्री ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि चीन तालिबान के साथ दोस्ताना संबंध चाहता है. 25 अगस्त को चीन के राजदूत ने काबुल में तालिबान के अधिकारियों से मुलाक़ात भी की.