रूस यूक्रेन के बीच जारी जंग की दुनिया के हर कोने में चर्चा हो रही है. इंटरनेशनल पॉलिटिक्स के लिहाज से बात करें तो इस पूरे मसले पर दुनियाभर के देश अपने स्तर पर प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं. लेकिन रूस-यूक्रेन मुद्दे पर भारत ने स्वतंत्र और निष्पक्ष रुख बरकरार रखा है. इस दौरान भारत के रुख को लेकर देश-विदेश में काफी चर्चा भी है. क्योंकि भारत दोनों देशों में से किसी का भी खुलकर समर्थन नहीं कर रहा है. अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई देश भारत पर लगातार दबाव बना रहे हैं कि वो रूसी हमले की आलोचना करे. वहीं भारत ने इस पूरे मसले पर अपनी तटस्थता बरकरार रखी है. तो आज के know this वीडियो में हम आपको बताएंगे कि आखिर वो क्या कारण हैं जिनके चलते भारत इस पूरे मामले पर शांत बना हुआ है साथ ही बताएंगे कि क्या रूस और यूक्रेन जंग में भारत रूस और अमेरिका से रिश्तों को लेकर तलवार की धार पर चल रहा है? बस आप वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ..
इस पूरे मसले पर सामरिक मामलों के एक्सपर्ट्स का मानना है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पैदा हुए हालात के बाद भारत को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. उनका मानना है कि मौजूदा हालात में भारत एक तरह से 'तलवार की धार पर' चल रहा है जहाँ उसे रूस और अमेरिका से अपने रिश्तों के बीच सामंजस्य बनाए रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.
वहीं अमेरिका भारत पर रूस के ख़िलाफ़ अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए लगातार दबाव बनाए हुए है. गुरुवार को 'क्वाड' की बैठक के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ज़ोर देते हुए कहा कि रूस के यूक्रेन पर हमले को लेकर 'कोई बहाना या टालमटोल नहीं चलेगा'.उनका इशारा भारत की तरफ ही था.. क्योंकि 'क्वाड' में शामिल दूसरे देश जैसे जापान और ऑस्ट्रेलिया खुलकर रूस की आलोचना कर रहे हैं और वो इस मामले में अमेरिका के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं.
अब आपको बताते हैं कि आखिर वो क्या वजहें हैं कि भारत चाहकर भी रूस के खिलाफ नहीं जा सकता? और भारत कैसे रूस और अमेरिका से अपने संबंध निभा रहा है?
दरअसल इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण ये है कि भारत भले ही हथियारों की खरीद के लिए अमेरिका, फ्रांस और इजरायल की ओर बढ़ा हो, लेकिन रूस अब भी नई दिल्ली की पहली पसंद बना हुआ है. क्योंकि दूसरे देशों की अपेक्षा रूस हथियारों के दाम और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को लेकर भारत के लिए ज्यादा उदार है. वहीं साल 2018 में ही भारत ने रूस के साथ दूर तक मार करने की क्षमता रखने वाली सर्फेस टू एयर मिसाइल की आपूर्ति के लिए 500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किया था. रूस ने भी साफ़ कर दिया है कि यूक्रेन में चल रहे उसके सैन्य अभियान का कोई असर भारत को दी जाने वाली मिसाइल आपूर्ति पर नहीं पड़ेगा और वो तय समय सीमा में ही भारत को दे दी जाएगी।
वहीं भारत के अमेरिका से रिश्तों की बात करें तो हाल के सालों में अमेरिका ने न सिर्फ़ भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाया बल्कि 'क्वाड' जैसे मंचों के जरिए बहुपक्षीय जुड़ाव को भी मज़बूत किया है. इसके साथ ही चीन से जुड़ी कॉमन चिंताओं ने इंडो-पैसिफ़िक में भारत और अमेरिका को एक-दूसरे के बेहद क़रीब ला दिया है. लेकिन रिश्तों की ये मधुरता दूसरे भौगोलिक क्षेत्रों में नहीं आ सकती है. जैसा कि रूस-यूक्रेन संकट में भारत और अमेरिका की अलग-अलग स्थिति से साफ़ तौर पर पता चल रहा है.
हालांकि रूस यूक्रेन युद्ध में भारत के तटस्थ रवैये को लेकर हर तरफ बात हो रही है, वहीं भारत के अमेरिका का पक्ष न लेने पर एक्सपर्ट का मानना है कि भारत के लिए इतिहास के सबक़ भूलना मुमकिन नहीं है. ऐसे कई मौके आए हैं जब अमेरिका ने भारत के बदले पाकिस्तान का समर्थन किया है और इसी तरह ऐसे कई वाकये भी हैं जब रूस ने भारत का अटूट समर्थन दिया. भारत रूस की ऐतिहासिक दोस्ती को भुला नहीं सकता और दूसरी तरफ अमेरिका के साथ हाल के वर्षों में बने अच्छे संबंधों को भी दरकिनार नहीं कर सकता. इसलिए भारत रूस यूक्रेन मुद्दे पर तटस्थता की नीति पर चल रहा है.