रूस यूक्रेन जंग के कई महीने हो गए हैं. माना जा रहा है कि इस युद्ध के पीछे एक बड़ी वजह नाटो है..वहीं यूक्रेन की NATO संगठन में दिलचस्पी और अमेरिका से निकटता के चलते ही रूस ने कीव के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया था. हाल के दिनों की बात करें तो रूस ने फिनलैंड और स्वीडन को भी धमकी दी है कि अगर वो नाटो की सदस्यता लेते हैं तो परिणाम भुगतने को तैयार रहें।। दरअसल यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच दशकों तक तटस्थ रहने वाले फिनलैंड और स्वीडन ने NATO में शामिल होने की घोषणा की है. फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन और राष्ट्रपति सौली नीनिस्टो ने गुरुवार को कहा कि NATO की सदस्यता के लिए जल्द ही आवेदन दाखिल करेंगे। वहीं रूस ने इससे पहले NATO में शामिल होने पर फिनलैंड के पास परमाणु हथियार और हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात करने की धमकी दी थी. ऐसे में फिनलैंड के ऐलान के बाद माना जा रहा है रूस बौखलाहट में कुछ बड़ा कदम उठा सकता है. तो आज के know this वीडियो में हम आपको बताएंगे कि आखिर नाटो से रूस को इतना गुरेज क्यों है? इसके पीछे की बड़ी वजह क्या है? साथ ही बताएंगे कि रूस यूरोप में NATO के विस्तार का विरोध क्यों कर रहा है? बस आप वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ
NATO का पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन है। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिकी देशों का एक सैन्य और राजनीतिक गठबंधन है। 4 अप्रैल 1949 को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस समेत 12 देशों ने सोवियत यूनियन का मुकाबला करने के लिए इसकी स्थापना की थी। NATO में अब 30 सदस्य देश हैं, जिनमें 28 यूरोपीय और दो उत्तर अमेरिकी देश हैं। इस संगठन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी NATO देशों और उसकी आबादी की रक्षा करना है। NATO के आर्टिकल 5 के मुताबिक, इसके किसी भी सदस्य देश पर हमले को NATO के सभी देशों पर हमला माना जाएगा।
रूस यूरोप में NATO के विस्तार का विरोध क्यों कर रहा है इसकी बात करें तो NATO का विस्तार रूस के लिए संवेदनशील मुद्दा है। वह इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताता है। यूक्रेन पर हमले के लिए भी वह इसे बड़ी वजह बताता है। रूस की 1300 किमी लंबी सीमा फिनलैंड से मिलती है। उसके लिए फिनलैंड एक बफर जोन है। रूस कतई नहीं चाहता कि NATO उसके इतने करीब आए। इसीलिए रूस, फिनलैंड के भी NATO में जाने का विरोध करता है।
फिलहाल नाटो के सदस्य देशों नॉर्वे, पोलैंड, एस्टोनिया, लातिविया, लिथुआनिया की रूस के साथ करीब 1,200 किलोमीटर लंबी सीमा है। अगर फिनलैंड भी NATO में आ जाता है, तो यह बढ़कर दोगुनी हो जाएगी।
वहीं रूसी राष्ट्रपति पुतिन कई बातों को लेकर चिंतित हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन का दावा है कि पश्चिमी देश नाटो का इस्तेमाल रूस के इलाकों में घुसने के लिए कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि नाटो पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य गतिविधियों पर विराम लगाए। पुतिन यह तर्क देते रहे हैं कि अमेरिका ने 1990 में किया वो वादा तोड़ दिया है। इसमें यह भरोसा दिया गया था कि नाटो पूर्व की ओर नहीं बढ़ेगा। वहीं अमेरिका का कहना है कि उसने कभी भी ऐसा कोई वादा नहीं किया था। नाटो का कहना है कि उसके कुछ सदस्य देशों की सीमाएं ही रूस से लगी हैं। यह एक सुरक्षात्मक गठबंधन हैं।
आखिर में बता दें कि रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया, दरअसल लंबे समय से यूक्रेन के यूरोपियन यूनियन, नेटो और अन्य यूरोपीय संस्थाओं के साथ क़रीबी का विरोध किया है. हालिया घटनाक्रमों के पीछ पुतिन का तर्क है कि यूक्रेन पूर्ण रूप से कभी एक देश था ही नहीं, उन्होंने यूक्रेन पर पश्चिमी देशों की कठपुतली बनने का भी आरोप लगाया है.
पुतिन यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि यूक्रेन नेटो में शामिल नहीं हो पाए. इसके लिए वह यूक्रेन और अन्य पश्चिमी देशों से गारंटी चाहते हैं. उनकी मांग है कि यूक्रेन अपना सैन्यीकरण बंद करे और किसी गुट का हिस्सा ना बने.