रूस और यूक्रेन के बीच अब भी युद्ध (Russian Ukraine War) जारी है. दोनों ही देश पीछे हटने को तैयार नहीं है. इस युद्ध के बीच रूसी राष्ट्रपति पुतिन का शक्ति प्रदर्शन जारी है. वहीं यूक्रेन के साथ युद्ध के बीच हाल ही में रूस ने कालिनिनग्राद में परमाणु हमला करने में सक्षम इस्कंदर मिसाइल से हमले का अभ्यास करते हुए पूरी दुनिया में खलबली मचा दी है. ये परमाणु अभ्यास रूस ने बाल्टिक सागर के पास स्थित कालिनिनग्राद में रूस के अहम सैन्य ठिकाने से किया। कालिनिनग्राद रूस के लिए सैन्य रणनीति के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है और माना जा रहा है कि वहां परमाणु अभ्यास करके उसने अमेरिकी वर्चस्व वाले NATO देशों और पश्चिमी देशों को एक तरह से यूक्रेन की मदद से दूर रहने की चेतावनी जारी की है. know this वीडियो में हम आपको बताएँगे कि रूस के लिए इतना अहम क्यों है कालिनिनग्राद साथ ही बताएंगे कि नाटो देशों को इससे क्यों डर लगता है और इससे पुतिन को क्या फायदा होगा? बस आप हमारे साथ
सबसे पहले जानते हैं कि रूस के लिए बेहद महत्वपूर्ण क्यों है कालिनिनग्राद?
दरअसल कालिनिनग्राद रूस का सबसे अहम मिलिट्री बेस है. सैन्य रणनीति के लिहाज से रूस के लिए काफी अहम है. इसकी एक खूबी है इसकी लोकेशन. यह नाटो के दो सदस्य देश पोलैंड और लिथुआनिया के बीच में स्थित है. इन्हीं देशों से यूक्रेन और बेलारूस भी जुड़े हैं. यहां लम्बे समय रूस सैन्य अभ्यास का रहा है. वर्तमान में जब नाटो देश यूक्रेन की मदद कर रहे हैं ऐसे में पुतिन ने यहां मिसाइल का अभ्यास करके उन देशों को अघोषित तौर पर चेतावनी दी है. यहां से परमाणु बम से लैस हथियारों का प्रयोग करने का मतलब है यूक्रेन के साथ NATO देशों को तबाह किया जा सकता है.
रूस ने कैसे और क्यों बढ़ाई कालिनिनग्राद में अपनी ताकत इसकी बात करें तो
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही अमेरिकी वर्चस्व वाले सैन्य गठबंधन NATO ने सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके देशों और पूर्वी यूरोप में तेजी से अपना विस्तार किया। ऐसा करके NATO का मकसद रूस को चारों ओर से घेरना था.
1999 में पोलैंड NATO का सदस्य बना. हीं 2004 में सोवियत संघ का हिस्सा रहे तीन बाल्टिक देश- लातविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया भी NATO से जुड़ गए। उसी साल ये तीनों देश यूरोपियन यूनियन से भी जुड़ गए। इन देशों के NATO और यूरोपियन यूनियन से जुड़ने से रूस का कालिनिनग्राद इलाका चारों ओर से NATO और यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों से घिर गया।
बता दें कि डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि कालिननग्राद ऐसी जगह है, जिसके जरिए रूसी सेना युद्ध की स्थिति में NATO और यूरोपीय देशों पर भारी पड़ सकता है। कालिनिनग्राद के जरिए रूस बाल्टिक सागर में यूरोपीय और NATO देशों की आवाजाही पर पूरी तरह लगाम लगा सकता है। माना जाता है कि भविष्य में NATO के साथ युद्ध होने पर कलिनिनग्राद रूसी अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण लॉन्चपैड होगा। वहीं कालिनिनग्राद सुवाल्की गैप के पास स्थित होने की वजह से भी महत्वपूर्ण है। सुवाल्की गैप एक 65 किलोमीटर लंबा जमीन का टुकड़ा है,गर रूस सुवाल्की गैप पर कब्जा कर ले तो वह पोलैंड और तीनों बाल्टिक देशों-लिथुआनिया, एस्तोनिया और लातविया का NATO के बाकी देशों से संपर्क काट सकता है।यही वजह है कि अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पहले अमेरिका बाल्टिक देशों को बचा सके, रूस इन देशों पर कब्जा करने में सक्षम है। कालिनिनग्राद में रूसी सेना की भारी संख्या में मौजूदगी और बेलारूस का समर्थन मिलाकर रूस बाल्टिक इलाके में NATO पर भारी पड़ सकता है।
इसके अलावा ये इलाका सिर्फ एक मिलिट्री बेस ही नहीं है, बल्कि आर्थिक लिहाज से भी यह रूस के लिए काफी अहम है. चीन और यूरोपीय देशों के बीच व्यापार के लिहाज से यह सबसे अहम बंदरगाह यहीं हैं. दोनों देशों के बीच सामान को ले जाने के अलावा और नॉर्वे से चीन तक जाने वाले ब्लॉक ट्रेनें यही से होकर गुजरती हैं.